हमारे गांव की गूल में पानी पहले से कम रहता है
नदी पहले जैसा शोर नहीं करती है,
पहाड़ पहले जैसे ऊँचे हैं
पर वृक्ष पहले से कम हो चुके हैं।
पुराने लोग कहते थे पहले जहाँ बाँज के पेड़ थे
वहाँ चीड़ उग आया है,
जहाँ बाघ दिखते थे
वहाँ सियार आ गये हैं।
प्यार के लिये नया शब्द नहीं आया है,
चिट्ठी के अन्त में
लिखा जाता था" सस्नेह तुम्हारा"
अब बस केवल संदेश होते हैं,
संदेशों में चिट्ठी की सी मिठास नहीं
अखबारों सी खबर आती है
या फिर चैनलों के शिकार हैं,
पर ये कभी कभी मीठी चाय से उबलते
हमारी ईहा बन जाते हैं।
पुरानी कथाओं में अब भी रस है
जैसे राम वनवास को जा रहे हैं
कृष्ण महाभारत में हैं,
भीष्म प्रतिज्ञा कर चुके हैं
परीक्षित को श्राप मिल गया है,
ययाति फिर जवान हो गये हैं
शकुन्तला की अंगूठी खो गयी है,
सावित्री से यमराज हार चुके हैं।

**महेश रौतेला
२१.०४.२०२१

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111800431
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

पुरानी स्मृतियों का वास्तविक स्मरण / बदलते वक़्त पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष / अति सुन्दर प्रस्तुति

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