यूँ ही जागते हुए अचानक मैं तुम्हें सोचने लगती हूँ। तुम मेरे ख़्यालों के बीच यूँ चले आते हो जैसे हौले से माँ की गोद में नींद आ जाती है.. या जैसे मेरी आँखों में तुम्हें देखते ही आँसू आ जाते हैं।
बस ख़बर ही नहीं लगती।
तुम्हें सोचती हूँ तो लगता है जैसे मैं तुम्हें बहुत क़रीब से जानती हूँ। जैसे मेरे जितना क़रीब कोई तुम्हारे है ही नहीं।
मैं तुम्हारे स्पर्श से ही तुम्हारे दिल का हाल जान जाती हूँ और तुम्हारी हथेली पर तुम्हारी धड़कनों को महसूस कर लेती हूँ।
अच्छा लगता है मुझे, तुम्हारे सीने पर सिर रख तुम्हारी धड़कनों को सुनना और यूँ सुनते हुए गहरी नींद सो जाना।
जानते हो.. कभी-कभी महसूस होता है जैसे मैंने तुम्हारे चेहरे को अपनी हथेली में भर लिया है और इस हथेली से जब चाहूँ उसे मेरे रोम-रोम में उकेर सकती हूँ या शायद उकेर लिया है।
कभी किसी रोज़ तुमसे बात होगी तो यह ज़रूर बताऊंगी की मैं तुमसे कितना प्रेम करती हूँ। क्योंकि मैं यह तो नहीं जानती की सबसे ज़्यादा करती हूँ या नहीं। मैं केवल इतना जानती हूँ कि मैं जितना कर सकती हूँ उससे अधिक करती हूँ।
कितना ग़ुरूर होता है खुद पर जब तुम भीड़ में खड़े होने पर भी मुझ पर नज़र रखते हो.. यह मैं तुम्हें शब्दों में नहीं बता सकती।
जब तुम मुझे कहीं जाता देख रोककर इशारों में पूछ लेते हो.. कहाँ..?
और मैं बस मुस्कुराकर तुम्हें जवाब दे दिया करती हूँ।
जब तुम मुझे परेशान नहीं करना चाहते और बस इसलिए किसी के मुझसे किए गए सवाल का जवाब भी खुद दिया करते हो तो बस..
यकीन मानो बहुत अच्छा लगता है।
जानते हो क्या..
मैं जिस कमरे में दिन-रात रहा करती हूँ उसकी दीवारों पर मेरे हाथों की छाप से तुम्हारी छवि बनती जा रही है और मैंने अपने हाथों की मुट्ठी बना ली है.. जिसे मैं खोल नहीं रही। डर रही हूँ कि कहीं यह हाथों की छाप किसी को स्पर्श करते ही उसके मन में तुम्हारी छवि ना बना दे।
डर रही हूँ कि यह मुट्ठी खुल गई तो तुम्हारी छवि चारों ओर बन जाएगी और फिर मुझे ईर्ष्या होगी इन दीवारों से, लोगों से, सब से।
मेरे लिए मुमकिन हो तो मैं तुम्हें तुमसे भी नहीं बांटू।
चाहती हूँ जिस वक़्त मेरे ये प्राण मेरी देह को छोड़ रहे हों उस आख़िरी वक़्त भी तुम मेरे ही समीप रहो और मैं हमेशा की तरह तुम्हारे सीने पर सिर रख तुम्हारी धड़कनों को सुनते हुए हमेशा के लिए सो जाऊं।
-रूपकीबातें
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