खुद को खोकर तुझे हमने पाया है
कुछ इस कदर हमने दौलत कमाया है।
मुक़ददर की राहें बिरान लगती हैं दरिया
दिखते फूलों में सिर्फ़ कांटों की काया है।
जवानी गिरवीं पड़ी है साहूकार के यहां
जिसे पाने में तन मन धन सब गवांया है।
हर मोड़ पर अग्नि परीक्षा नहीं लेते दरिया
इस बात को तुम्हें कितनी बार समझाया है।
थक गयी रातें जो नींद की कसमें खाती थी
हमने आंखों में नया दीपक जो जलाया है।
-रामानुज दरिया