समस्या का हल
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(रचनाकार - प्रमिला कौशिक)
देश है एक समस्याएँ अनेक
क्या है हल जगाओ विवेक।
अरे भाई! ये जो है ''महँगाई''
आज अचानक ही नहीं आई।
सब सरकारों ने रखा ज़िंदा
तभी तो यह मर नहीं पाई।
सबने था पाला पोसा इसे
इसीलिए परवान चढ़ आई।
बोलो हमारी क्या है ग़लती
यह तो यौवन की तरुणाई।
एक और कन्या "गरीबी" आई
साथ में "बेरोज़गारी" भी लाई।
अब दोनों जुड़वाँ बहनें सी
सोच रहीं अब आए भाई।
"भ्रष्टाचार" भाई बन आया
बजे ढोल, सोहर भी गाई।
तीन थीं बहनें भाई एक
हुई ख़ूब खिलाई पिलाई।
भ्रष्टाचार फला और फूला
खाकर ख़ूब दूध मलाई।
वर्तमान और पूर्व सरकारें
एक दूजे पर दोष लगातीं।
कोई कहे ये अभी बढ़े हैं
कोई कहे ये पूर्व की थाती।
जले पर नमक का मरहम
भीख दे एहसान करते रहो।
रहमोकरम पर रहे जनता
ताकि वोट तुम पाते रहो।
आत्मनिर्भर भारत का
गीत तो ख़ूब ज़ोर से गाओ।
पर ग़रीबों को कभी भी
आत्मनिर्भर मत बनाओ।
अरे ! सारा खेल वोट का है
चुनाव में वोट से चोट का है।
अनगिन वर्षों से नहीं हुई जब
"गंगा माँ - यमुना की सफाई" ।
तो कैसे कुछ वर्षों में हो जाए ?
क्यों नहीं बात समझ यह आई ?
पावन गंगा ही हो गई दूषित
तो कैसे वह अब उद्धार करे।
पापियों की नगरी चमक रही
किसके पापों को कौन हरे ?
"गंगा में तिरती दिखीं जो लाशें"
कोरोना मरीजों की नहीं थीं वे।
भगीरथ के पुरखों की थीं सब
बहकर आई हिमालय से थीं वे।
जो पुरखे तब तर नहीं पाए थे
वे अब धरती पर उतर आए थे।
विश्राम कर रहे, लेट रेत पर
चूँकि थक कर चूर हुए आए थे।
"आवारा पशु" भी एक समस्या है
लो जी! एक मुद्दा और आया।
नेता ने कहा - कि साँडों को
कोई बाँध कहाँ कब रख पाया?
आवारा पशु का यह मुद्दा
नहीं केवल एक प्रदेश का है।
यह तो हर गाँव शहर का है
हर प्रांत समूचे देश का है।
कितना हास्यास्पद लगता है
हल कहीं न कोई मिलता है।
इकदूजे पर सब दोष मढ़ो
पर हल कोई भी मत खोजो।
अरे! उत्तरदायित्व लेगा कौन ?
समस्या का हल देगा कौन ?
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