निहित न निज स्वार्थ मेरा।

प्रेम परिभाषिक अर्थ मेरा।।

युगल तुम चारुता का कण।

त्वरित कर दूँ परमार्थ तेरा।।
-!~कृष्णा~!

Hindi Shayri by !~कृष्णा~! : 111786826

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