परोपकार
बांधवगढ़ के जंगल में एक शेर एवं एक बंदर की मित्रता की कथा बहुत प्रचलित है। ऐसा बतलाया जाता है कि वहाँ पर एक शेर शिकार करने के बाद उसे खा रहा था तभी एक बंदर धोखे से पेड से गिरकर उसके सामने आ गिरा। शेर ने उसकी पूंछ को पकड लिया। पेड पर बंदरिया भी बैठी हुई थी। बंदर की मौत को सामने देखकर वह करूण विलाप करने लगी। बंदर ने भी दुखी मन से एवं कातर दृष्टि से बंदरिया की ओर इस प्रकार देखा जैसे अंतिम बार उसे देख रहा हो। शेर को पता नही क्या सूझा उसने बंदर की पंूछ छोड दी और उसे भाग जाने दिया। बंदर वापिस पेड पर चढकर बंदरिया के पास पहुँच गया। दोनो बडे कृतज्ञ भाव से शेर की ओर देखते हुए मन ही मन उसे धन्यवाद देते हुए वहाँ से चले गए।
एक दिन वह शेर अपने में मस्त विचरण कर रहा था। वह बंदर और वह बंदरिया भी पेड केे ऊपर बैठे हुए थे। शेर जिस दिशा में जा रहा था उसी दिशा में शिकारियों ने शिकार के लिए तार लगाए हुए थे। उन तारों मंे बिजली का करंट दौड रहा था। यह खतरा भांपकर बंदर और बंदरिया ने चिल्लाना शुरू कर दिया परंतु शेर की समझ में कुछ नही आया। यह देखकर बंदर और बंदरिया ने एक सूखी डाली तोडकर शेर से कुछ दूर उन तारों पर फंेकी। शॉर्ट सर्किट के कारण उस डाली में आग लग गई। शेर भी सावधान होकर तत्काल रूक गया। उसकी जान बच गई। सब कुछ समझकर उसने कृतज्ञ भाव से बंदर और बंदरिया को ओर देखा जैसे उनके प्रति आभार व्यक्त कर रहा हो।
इसलिए कहते है कि परोपकार का फल जीवन में अवश्य मिलता है। शेर ने बंदर की जान छेाडी थी उसी के बदले स्वयं उसकी जान भी बंदर ने बचाकर उसके उपकार का बदला चुकाया।