ईमानदारी गुम है ये जहाँ में
बेईमानी सर चढ़ जो आई है
हर कदम फूँक-फूँक रखना जनाब
सच्चे वफ़ा ने ओढ़ी झूठी परछाई है,
काला चढ़ जाता है, हर रंग के ऊपर
सच्चाई का रंग अपना अस्तित्व भूल आई है।
भोला-भाला पिस जाता यहाँ,
एक मासूम पे सौ बला उतर आई है।
बेईमान ईमानदारी का क्या करे?
सच्चे ईमान पर झूठ का पलड़ा भारी है।
शहद सी मीठी, ज़हर ये लगती,
देखें भी तो आंखें चौंधिया आई है।
ईमानदारी गुम है ये जहाँ में
बेईमानी सर चढ़ जो आई है


#sakshi

Hindi Poem by Sakshi : 111781854
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

वक़्त और मांग के अनुसार वास्तविक प्रस्तुति.. तथा इंसान के स्वभाव का यथार्थ विवरणन...

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