कभी यूं भी तो हो,
ढल रही हो शाम और आंखों में उजाले भर जाए,
कभी यूं भी तो हो,
मैं झांकू अपनी खिड़की से और तू नज़र आए !
कभी यूं भी तो हो,
उठ कर क्षितिज से सूरज मेरी गली में आए !
कभी यूं हुई तो हो …

#मन_सतरंगी

Hindi Microfiction by कविता मुखर : 111781469

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