" मन सतरंगी"
मन के ताल में छिपी हैं सीपियां , गर्भा सीपियां ...झील की सतह पर खिलते हैं कमल...
शब्दों के फ़ूल ! कभी किनारे बैठ जो फेंके थे कंकर , सोच में डूबे , उठी थी लहरें बहुत देर तलक , इस झील में, उस हृदय में …आज चुग रहे हैं कुछ किशोर हाथ छोटे छोटे, गोल गोल, सफ़ेद काले पत्थर ... पत्थर हृदय में , प्रेम है मूल ! नयनों से झरते हैं अश्रु ... मन के ताल में छिपी हैं सीपियां , गर्भा सीपियां !

#मन_सतरंगी
#खयाल

Hindi Microfiction by कविता मुखर : 111781304

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