हो गई....

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अश्क़ की दो बूँद लेकरमैं चली पिय को रिझाने

किंतु मेरी राह धुँधली हो गई...

और अब किस ओर जाऊँ मैं बता नाविक मुझे तू 

नाव मेरी है ये जर्जरऔर पुरानी हो गई.....

तूने मुझको नाव सौंपी थी नया ऋंगार करके

दी थीं पतवारें भी हाथों में बहुत मनुहार करके

मैं उतरकर नाव से डूबी नदी में जब स्वयं ही

तब भी तूने भरम तोड़ा इस हृदय में स्नेह भरके

हाथ मेरा थाम तूने नाव में फिर से चढ़ाया

स्नेह आशीषों को पाकर मैं रुहानी हो गई.....

श्वाँस में कुछ हलचलें हैं कुछ दिवानी बलबलें हैं

दिल भरा है स्मृतियों से कुछ झरोखे मनचले हैं

झाँकते हैं छुपछुपाकर स्वयं से आँखें चुराकर

किंतु जब तूने दुआ दी मैं सुहानी हो गई.....

जागती आँखों के सपने रात भर चिपटे रहे थे

जो बिखर कर भी बने थे साँस में लिपटे रहे थे

मूँद कोरों को जो छूआ एक सपना और बोया

जाने किस कोने से महकी रातरानी हो गई.....



डॉ.प्रणव भारती

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111781276
अब ला इलाज हो गए है देव बाबू 2 years ago

हर एक लम्हें में तुझको जिया है हमने, तुम फिर भी पूछते है क्या किया है हमने...?

Pranava Bharti 2 years ago

बहुत धन्यवाद

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अत्यंत मनमोहक तथा हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति...

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