1 मंजरी
मातु यशोदा मथ रही, मथनी से पय-सार।
लटकी जो मंजीर वह, बजती बारम्बार ।।
2 मेदनी
निकल पड़ी जन-मेदनी, विंध्याचल कोआज।
नव-दुर्गा का पर्व यह, सभी बनेंगे काज।।
3 बारूद
कट्टरता की सोच ही, मानवता पर भार।
बैठी है बारूद पर, दुनियाँ की सरकार।।
4 चीवर
गेरू-चीवर पहनकर, चले राम वनवास।
अनुज लखन सीता चलीं, दशरथ हुए उदास।।
5 कलिका
कोमल कलिका देख कर, हर्षित पालनहार।
फूल खिलेगा बाग में, खुश होगा संसार।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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