"पतंगें"
हरी नीली पीली गुलाबी पतंगें
न जाने मगर कौन सी अब कहाँ है?
किसी-किसी के रंग, लगते सजीले
किसी-किसी के अंग,होते नशीले
किसी-किसी के तंग, थे ढीले-ढीले
तरसाती थीं दूर से भी पतंगें !
इन्हें देखते छत पे आते थे लड़के
गली में मिलीं, लूट लाते थे लड़के
पकड़ डोर जबभी, हिलाते थे लड़के
धरा से गगन पे, जातीं पतंगें !
कोई दोस्तों से मिलके उड़ाता
कोई लेके इनको,अकेले में जाता
सभी का मगर इनसे कोई तो नाता
होतीं सभी की मुरादें पतंगें !
पड़ता था घर के बड़ों को मनाना
कहते थे बाबा, थोड़ी उड़ाना
जैसा हो मौसम उसी से निभाना
देती हैं भटका,ज़्यादा पतंगें ! 
किसी की उठन थी, बड़ी ही लजीली
किसी की छुअन थी,बड़ी ही नशीली
किसी की गढ़न थी, बड़ी ही सजीली
सपनों में आती, थीं ये पतंगें !
डरता था दिल ना, कट जाएं देखो
करता था दिल ये, सट जाएं देखो
मरता था दिल ना, फट जाएं देखो
जैसे बदन का हिस्सा पतंगें !

Hindi Song by Prabodh Kumar Govil : 111777767

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now