#पतंग
(मकर संक्रान्ति पर विशेष)
माँझे में शीशे की किरचें, सबको काट गिरा देगी ये,
विपरीत हवाएँ भी आ जाएँ, फिर भी राह बना लेगी ये!
शान से नभ से बातें करती, सबसे ऊँची मेरी पतंग,
नयनभिराम और सबसे प्यारी, मेरा घमंड है मेरी पत॔ग!
कहाँ पता था वक्त थपेड़े, पर्वत को भी पिघला देते हैं,
सृष्टि अनंत जर्रा है इन्साँ, कुछ पल में बतला देते हैं!
बस दो बूँद गिरी बारिश की, लुगदी बन गयी मेरी पतंग,
वक्त ने ऐसा खेल दिखाया, और किसी की उड़ी पतंग!!
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com