*जिंदगानी*
रोशनी चांद से भी होती
रोशनी सितारों से भी होती
पर अपनी क्षमतानुसार होती
दीप की लौ यही हमें समझाती
जिंदगी मुस्करातीं भी है
कभी कभी रोती भी है
हकीकत में ज्यादा हारती है
छोटी सी जीत का जश्न मनाती है
सुख की सुधा जब बरसती
जिंदगी लहलहाती
दुःख की घटा जब छाती
जिंदगी कहराती
दस्तूर अपने जीने के
बेखूबी से निभाती
भूले नादान करते
समझदार इसे जी ते
बताओ,उन्हें क्या कहते ?
जो इसे रोज कंधों पर ढो ते
इंसान की छोटी सी कहानी
उसी का नाम है, जिंदगानी
दावा नहीं किस ने पहचानी
न मैने, न तुमने कभी इसे जानी
✍️ कमल भंसाली