तेरी इजाज़त

तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही।

अपने दिल से कर दो रुखसत ये हो नहीं सकता।।

लाख फेरो यूँ नज़र मुझको जलाने की खातिर।

पलट - पलट के न देख तू ये हो नहीं सकता।।

मैं वाकिफ हूं तेरी हर एक उन कमजोरियों से।

तुम उनसे तोड़ चुकी हो रिश्ते ये हो नहीं सकता।।

मुझको मालूम है तेरे दिल को बिछड़ने का है डर।

जिस्म से जान हो जाए अलग ये हो नहीं सकता।।

हम तुम एक हैं जनम से है ज़माने को खबर।

तेरी इजाज़त न हो ज़माने को ये हो नहीं सकता।।


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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111775406
सुधाकर मिश्र ” सरस ” 2 years ago

धन्यवाद शेखर जी।

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

वाह क्या बात है बहुत खूब..

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