हैसियत
तेरे नाम का सिंदुर पहन पिया
मैं बन गई तेरी मिल्कियत
तेरे रँग में रँगती चली गई
मैं भूल के अपनी असलियत
दो वचन प्यार के बोल के तुम
कब जीत गये कुछ पता नहीं
मिलती कब है इस दुनिया में
परछाई को कोई अहमियत?
जब बात पेट के जाए की
कैसे समझौता अब कर लूँ
हर ताकत से टकराऊँगी
रखती हूँ इतनी हैसियत!
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
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