हैसियत


तेरे नाम का सिंदुर पहन पिया
मैं बन गई तेरी मिल्कियत
तेरे रँग में रँगती चली गई
मैं भूल के अपनी असलियत

दो वचन प्यार के बोल के तुम
कब जीत गये कुछ पता नहीं
मिलती कब है इस दुनिया में
परछाई को कोई अहमियत?

जब बात पेट के जाए की
कैसे समझौता अब कर लूँ
हर ताकत से टकराऊँगी
रखती हूँ इतनी हैसियत!

मौलिक एवं स्वरचित

श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com

Hindi Poem by श्रुत कीर्ति अग्रवाल : 111775155
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

वाह क्या बात है बहुत खूब

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