तमाम उम्र ये सोच भारी रही
की उनकी जुल्फों में मेरी उम्मीदें
उम्र भर कश्मशाति रही
बेपरवाह सी उनकी उँगलिया
अपने केशुओं में और भी उलझाती रही
बेबस हुई मेरी निगाहे
उनकी इनायत ढूँढती रही
खुद को इतना बेअसर न करना था
इस सोच में जिंदगी गुजरती रही
✍️ कमल भंसाली

-Kamal Bhansali

Hindi Shayri by Kamal Bhansali : 111774413
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

वाह क्या बात है बहुत खूब

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