धानी बन जा --
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कल -कल करता पानी बन जा
प्रेम-प्रीत के गीत गुनगुना
सबकी राम कहानी बन जा --कल -कल करता
क्षत -विक्षत तन की मर्यादा
तू हर मन की वाणी बन जा --कल -कल करता
डिश-दिशा में तम फैला है
रोशन कर जग दानी बन जा --कल-कल करता
गंध बाँट दे सबमें ऐसी
प्रचलित एक कहानी बन जा --कल-कल करता
बरसा प्यार जगत भर में तू
चूनर रंगकर धनी बन जा --कल-कल करता

डॉ. प्रणव भारती

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111773440
Pranava Bharti 2 years ago

धन्यवाद

shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अति सुन्दर प्रस्तुति

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