1थरथर
काँप रहा थरथर बदन, बढ़ा ठंड का जोर।
शीत लहर ऐसी बही, हो जा अब तो भोर।।
2 मार्गशीर्ष
मार्गशीर्ष के माह में, होती श्रद्धा भक्ति।
भक्तगणों को मिल रही, इससे अद्भुत शक्ति।।
3 कंबल
कंबल ओढ़े सो गए, फिर भी कटे न रात।
ओढ़ रजाई बावले, बन जाएगी बात।
4 ठंड
ठंड कड़ाके की पड़ी, घर में जले अलाव।
फिर भी भगती है नहीं, लगता बड़ा दुराव।।
5 ठिठुर
पारा गिरता जा रहा, ठिठुर रहे हैं लोग।
बदले मौसम को सभी, सुना रहे हैं भोग।।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111772939
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अति उत्तम सृजन

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now