बूढ़ी रज़ाई
मौसम में ठिठुरन बढ़ते ही
तुरत कह उठी बूढ़ी रज़ाई
स्वेटर,जर्सी,शाल, गुलूबंद
उठो सभी है ठंडी आयी
पूर्ण हुये आराम के दिन अब
लगो काम पर तुम सब अपने
ठंड लगे ना छोटे बड़ों को
सब नींद में देखें मीठे सपने
खुशी अधूरी रहेगी तब तक
जा न सकी जिनके घर अब तक
उस घर भी मैं पहुंच बनाऊँ
उनके संग मैं भी इठलाऊं
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