मैं और मेरे अह्सास

आँखों से आंखे तक़राई l
खूबसूरत आहत आई ll

दूर तो जाना चाहते थे l
फ़िर बीच में चाहत आई ll

सपनों की नगरी से होकर l
यादें घूम के वापस आई ll

ना इलाज दर्द पा लिया l
के दवाई न माफक आई ll

आँखों मे बसाने अकेले l
चुप के छत पे जानम आई ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111768315

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