मैं और मेरे अह्सास

बड़ी नजदीक से देखे है बदलते चेहरे l
परवाह नहीं चाहें जो हो पलटते चेहरे ll

चारो और बेशर्म होकर बने घूमते हैं l
गली नुक्कड़ यहां वहां भटकते चेहरे ll

आज बेपर्दा होकर महफिल मे आये हैं l
आशिक की झलक को मचलते चेहरे ll

सुबह शाम यहाँ वहाँ घूमते फिरते हैं l
दिल की तरफ प्यासे तरसते चेहरे ll

जो कभी भी किसी के नहीं होते वो l
रेत तरह अपनों के सरकते चेहरे ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111767439

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