मैं और मेरे अह्सास

मिथ्या जीवन

जिसे देखो जी रहा है मिथ्या जीवन l
फुर्सत ही नहीं के देखे सुन्दर उपवन ll

युगों से गुलों की राह तकता है आँगन l
मुहब्बत का बीज बोके महका दो गुलशन ll

समय के साथ चलने में ही है समझदारी l
सदियों से संसार का नियम है परिवर्तन ll

दर्शिता

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111766384

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