मैं और मेरे अह्सास

जो एहसास लिख नहीं पाए l
वो अनकहे लब्ज समज जाए ll

काश मिलन की तडप यू बढ़े l
बिना बुलाए पास दौड़ आए ll

काफी देरसे कौआ बोल रहा है l
काश कासिद उनका संदेशा लाए ll

इसी लम्हे के इंतजार में जीते हैं l
वो राहों मे खड़े हो बाहें फैलाए ll

हर दिन खुशगवार बन जाए ग़र l
आज खुद ही आगोश में समाए ll
दर्शिता

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111765975

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