#hindi poem
हिचकियाँ भर्ती है सांसे ,
नहीं है !अब उनमें इतना दम
हर पहर ढूंढे वो भावुक आँखें ,
कहीं दिख जाए उनको , वो अपना सा!
दर्द कम करने वाला गम ।

हर दीवार का दामन पकड़ता हाथ ,
सोचे! मिल जाए सहारा
उस परिचित छुअन ,का साथ का अब
सात कसमें खाई थी जिस के संग
कहीं दिख जाए वो चंचल सा मन
करते उसके संग हास्य व्यंग ।

कांच के शीशे में आज,
ढूँढे अपने साहिल को, बहलाते हुए अपना मन
सफेद लटों को सवारते कहीं ,
चुपके से कहीं देखता ना हो
उसका वृद्ध ढलकता सा प्रतिबिंब

बीत रही है सबर की बेला अब ,
कि कभी उस टूटे हुए दिल को
बांधे गा या नहीं अंत तक
बंधन तो अब आखिरी ख्वाहिश का है
वो विश्व भी आकर पिला दें , तो वो अमृत सा है ।
Deepti
(Read in caption)

Hindi Poem by Deepti Khanna : 111764938
Varsha Shah 2 years ago

आखरी पंक्ति मे 'विष' के बदले 'विश्व' हो गया है?

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now