अक्सर यही दस्तूर है इस दुनिया का
दायरे अलग है औरत और मर्द के
सदियों से है ये रीत चली आई
कि हर रस्म या रीत रिवाज पर
औरत और मर्द के लिए अलग कायदे है बने
समाज एक ही है फिर क्यों ऐसे ही है यह भीन्नता
क्यों हर बार औरत को ही हर कायदे कानून में
अग्नि परीक्षा में से गुजरना पड़ता है
अगर हो बात एक मर्द के लिए तो उनको तो पुरस्कृत किया जाता है
क्यों हर बार यह जाति भेद कर के औरत को नीचा दिखाया जाता है
क्यों ये रीत चली आई सदियों से
क्यों नहीं बदलाव ला रहे हैं हम लोग. .... Bindu Anurag
जब मीटेगी यह जाति भेद की भावना,तब शायद हम न होंगे..
कब होगा यह स्वीकार कि ,
स्त्री और पुरुष ईश्वर की ही बनाई हुई एक रचना है...
बच्ची बेटी हो या बुड्ढी बस स्त्री एक अलग मिट्टी की है
जबकि जन्म से ही बेटे को समाज में एक अलग स्थान दिया गया है
मैं नहीं करती किसी से शिकवा शिकायत
क्योंकि मैं जानती हूं कि यह सब बनाने में भी एक स्त्री ही अग्र है
बात शादी की हो तलाक की हो या हो स्वमान से रहने की
हर बार स्त्रियों को ही अपना कर्तव्य समझकर कई बलिदान देना पड़ता है।
सदियों से यह रीत है चली आ रही की स्त्री का जीवन हे कठिन
कई सारी बाधाएं अड़चन रीत रिवाज रिश्तेदारी केवल स्त्रियों के लिए ही है..
जबकि पुरुष के लिए कोई भी बाधाए अड़चन रीत रिवाज रिश्तेदारी की सीमाओं को बांधा नहीं गया...
कब बदलेंगे हम यह स्त्री और पुरुष के बीच में यह अंतर की बात...
05/07/20
09:00 PM