दीप ! तुम
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चाहे आएं कितनी आँधी चाहे हो बिजली घनघोर
चाहे आँसू की लड़ियाँ हों टूटे सपनों की कड़ियाँ हों
अपनी लौ से मुस्कानें भर सदा किया करते पथ उज्जवल
महत्वपूर्ण है कार्य तुम्हारा सबके पथ रोशन करते तुम
अँधकार तुमसे ही हारा....
मन में पीड़ाओं का घर होहृदय-द्वार साँकल का पहरा
झिर्री से भी सरक सरक कर इक लकीर से मार्ग बनाकर
रोशन कर देते मन-आँगन सुरभित हो जाता है प्राँगण
क्लेश समाप्त सदा करते हो दिप-दिप मुस्काते रहते हो
दिव्यपूर्ण संबंध तुम्हारा....
बहुत हो चुकी नाकाबंदी ऊर्जा पहुँची है कगार पर
बाल-वृंद है बुझा बुझा अब खिलखिल पर आरोपित मंदी
दीप ! तुम्ही से आशाएं हैं उजला फिर संसार बनाओ
तोरण बन,द्वारे सज जाओ
शाश्वत् है यह प्रेम तुम्हारा....
दीपावली की मंगलकामनाओं सहित
आप सबकी मित्र
डॉ.प्रणव भारती