जीवन की नियति
संसार है नदी,
जीवन है नाव,
भाग्य है नाविक
कर्म है पतवार,
पवन व लहर है सुख तथा
तूफान व भंवर है दुख।
पाल है भक्ति
जो नदी के बहाव
हवा के प्रवाह और
नाव की गति एवं दिशा में
बैठाती है सामंजस्य।
भाग्य, भक्ति और
कर्म के कारण
व्यक्ति को मिलता है
सुख और दुख।
यही है जीवन की
सद्गति और दुर्गति।
इसी में छिपी है
इस जीवन की नियति।