सुदूर शाम
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सुदूर शाम रंगभरी, नए सपने सजाती
आँखों में समा अनोखी छटा है लुभाती
सूर्य की लालिमा सागर में उतरती हौले से
रूप की मादिरा जल में प्यार से है छलकाती ।

मंद हवा पर्वतों को छूकर उनसे कुछ कह जाती
पेड़ों की पत्तियाँ धीरे - धीरे अपने में सिमट जाती
निशा प्रकृति का निमंत्रण पाकर धरा में उतरती है
विश्राम की घड़ी का सबको है आभास करा जाती।

अद्भुत संगम होता है दिन - रात की घड़ी का यहाँ
बिखरा पड़ा है सौंदर्य समाया है उसमें सारा जहाँ
जीवन चक्र दिन - रात के इर्द-गिर्द घूमा करता है
इनमें ही खो जाता है इंसान न जाने कहाँ - कहाँ।

आभा दवे
मुंबई

Hindi Poem by Abha Dave : 111759015
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अति सुन्दर प्रस्तुति

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