गुस्सा
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बेरोजगारी के आलम
और महामारी काल में
अगर कोई
पूछ लें आप कैसे हो
तो गुस्सा आ जाता है।
कोई अनजान अगर
प्रवेश करना चाहे
मेरे अतीत में
तो गुस्सा आ जाता है।
बिना जाने कोई
मेरे भविष्य का
कर दे निर्णय
तो गुस्सा आ जाता है।
बुद्धिजीवियों की तंग और सँकरी
गलियों से निकलते विचारों का लेखा जोखा
अगर मेरे प्रश्न का उत्तर बन जाये तो
गुस्सा आ जाता है।
कोई अवसरवादी बूढ़ा गिद्ध बुद्धजीवी
अगर मेरे भाग्य और भविष्य पर
अफ़सोस ज़ाहिर करें
तो गुस्सा आ जाता है।
सड़क पर तेज हॉर्न बजाती
आती जाती हज़ारों गाड़ियों,
टोलियां में खेलते बच्चों
का शोर,
एकांत में बैठा
सारंगी बजाता
कोई बूढ़ा,
और खुल जाए अवसाद तनावग्रस्त
में अधखुली पलकें,
तो गुस्सा आ जाता है।
अपने हिस्से का थोड़ा सा स्पेस,
थोड़ी सी स्वच्छ हवा,
थोड़े से स्वंत्रत विचार,
बस यही तो चाह है
मैंने हमेशा से ।
###प्रेमा ##

-prema

Hindi Poem by prema : 111757991

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