ये शामें इतनी तन्हा इतनी वीरानी क्यों होती है,क्यों हर शाम जैसे कुछ खोने का एहसास कराती है,ये शामें क्यों दिल को इतना डराती है,क्या खोया था इन शामों में जो आज तक हर शाम वही एहसास दोहराती है,चंद लम्हों की तन्हाई भी जाने कितनी यादें ले आती है,हर यादें जैसे खुद से ही कही दूर मुझे ले जाती है,,,,

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