कर्मवीर
वह नास्तिक था,
ईश्वर को नही मानता था।
धर्म और कर्मकांड पर
उसे विश्वास नही था।
धर्म और कर्म के बीच का संबंध
उसके लिये बेमानी था।
उसके पास धन था, संपत्ति थी,
वैभव और सुख था।
दूसरों की मदद करके
उसे संतोष मिलता था।
दूसरों की सेवा करके वह
आनंदित होता था।
उसका जीवन आधारित था
उसके सद्कर्मों पर
एक महात्मा से किसी ने पूछा -
वह ईश्वर को नही मानता
पूजा नही करता, व्रत नही रखता,
उपवास नही करता, तीर्थयात्राएँ नही करता,
संतो की संगति नही करता,
ज्ञानियों के प्रवचन नही सुनता।
मृत्यु के पश्चात उसको
कौन सी गति मिलेगी ?
महात्मा बोले
यह सच है कि वह
ईश्वर को नही मानता
लेकिन वह करता तो वही है
जो ईश्वर चाहता है।
इसलिये वह मोक्ष पाएगा।
कर्म के कारण वह
ईश्वर का हो जाएगा।