आस्था और विश्वास

नास्तिकता बोली -
ईश्वर कहाँ है ?
क्या तुम उसे मिले हो ?
क्या तुमने उसे देखा है ?
उसका रूप कैसा है ?
या तो तुम मानो कि
ईश्वर कोरी कल्पना हैं।
या फिर मुझे विश्वास दिलाओ
कि ईश्वर है और ऐसा है।
आस्था बोली -
क्या तुमने हवा को देखा है
नही देखा।
किंतु उसका आभास तुम्हें है।
उसका एहसास तुम्हें है।
प्रेम का स्वरूप नही होता
पर वह होता है।
आत्मा को किसी ने नही देखा
किंतु वह है
उसके होने से ही हममें जीवन है
इसी तरह ईश्वर भी है
हमारी चलती हुई सांसे,
बढते हुए वृक्ष,
लहलहाती हुई पत्तियाँ
चहचहाते हुए पक्षी, ये सब
ईश्वर के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण है
और ऊँचा खडा हुआ पर्वत
शांत पडा हुआ रेगिस्तान
रेगिस्तान मे छलकते पानी के सोते
लहराता हुआ सागर
ये सब वैसे तो निर्जीव है
परंतु इनके भीतर भी ईश्वर है
जिसके कारण इनमें है मर्यादा।
वह कह उठी - हाँ,
मानती हूँ ईश्वर है
हमारी दृष्टि से परे
हमारे भीतर भी
और हमारे बाहर भी।

Hindi Poem by Rajesh Maheshwari : 111756138
shekhar kharadi Idriya 2 years ago

अति सुन्दर

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now