बिन मंजिल सफर मेरा
कहा जाना है केसे जाना है
किसका होना है क्यूँ होना है
ना जानू मे किसे पूछूँ
बस चलती रहु थमी -थमी
आँखो मे लिए हलकी नमी
कुछ राही मुझे मिले
थोड़ा बहुत दोनों खिले
हमेशा साथ का वादा किया
आधे रास्ते छोड़ आधा किया
लोग कहे वहाँ जा
सुकून दिखेगा
उस रास्ते पैसा मिलेगा
ऊपर नीचे
आगे पीछे दौड़ी थी मैं
आधे मुकाम पे हांफी थी मे
पर अब ना मंजिल है ना साथी है
ना रास्ता है ना राही है
ज़िंदा लाश सी जींदगी है
घसीटते कट रही है