गजल

माटी पानी आग हवा ये साथ हमेशा‌ रहते हैं,
हे मानव तू ऐसे रह ले हंसकर हमसे कहते हैं।

तरुवर संत सरीखे जीते भेद नहीं करते कोई,
छायां फल देने वाले वे कितने पत्थर सहते हैं।

खुशबू तितली कोयल देखो बोले अपनी मस्ती में,
कहने वाले फिर भी उनको जाने क्या क्या कहते हैं।

सबका वक्त बदलता भाई पतझर होगा फिर से मधुवन,
रोना छोङों जी लो जी भर बहते झरने कहते हैं।

गरदन की ये अकङन तेरी कितने दिन चल पाएगी,
चाहे जितने ऊंचे हो सब किले एक दिन ढहते हैं।

नरम मुलायम दूब बताती जीवन की ये सच्चाई,
इस दुनिया में 'पूनम' टिकते जो मुश्किल को सहते हैं।

डॉ पूनम गुजरानी
सूरत

Hindi Shayri by Poonam Gujrani Surat : 111754783
Poonam Gujrani Surat 2 years ago

धन्यवाद जी 🙏

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