मैं बेवकूफ़ सी बेपरवाह यूँही रहती हूं,
अपनी ही धुन में...
क्या फर्क पड़ता कुछ बाक़ी रह भी गया तो..
एक ना एक दिन तो सबकुछ रह ही जाएगा..
क़यामत के दिन तो हम होंगे ही सबसे आगे,
और ज़माना हमारे पीछे ही आएगा..
मैं इन बन्द किताबों का इतिहास नहीं बनना चाहती..
जो खुद एक ना एक दिन मिट ही जाएगा..
मैं वो पहली बारिश की सोंधी सी खुशबू होना चाहती हूं..
जिसे महसूस कर कोई मिट्टी खाने को तरस जाए..
मैं वो चंदन हो जाना चाहती हूं..
जिसकी महक हमेशा के लिए ज़हन में बस जाए..
मैं वो मिट्टी हो जाना चाहती हूं,
जहाँ मेरे महादेव बसते हों...🙏

Hindi Poem by Sarita Sharma : 111753225

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now