#हाइफा_दिवस
#दुनिया_का_एकमात्र_ऐसा_युद्ध_जिसमें_तलवारों_और_भालो_का_सामना_मशीन_गनो_और_तोपों_से_था

मित्रों आज 23 सितंबर है, और ये कोई आम दिन नहीं है, आज ही के दिन करीब 102 साल पहले भारत के रणबाकुरों ने हाइफा को अॉटोमन्स से आजादी दिलाई थी.

दोस्तो आज हम आपको ऐसे युद्ध के बारे में बताएंगे, जिससे हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा .

वो अलग बात है‌ कि भारत मे ये इतिहास गायब है, पर इस युद्ध के चर्चे आपको इजरायल और ब्रिटिश इतिहास की किताबो में आज भी मिल जाएंगे.

सबसे बड़ी बात ये युद्ध भारत मे नही बल्कि सात समुंदर पार हुआ था, लेकिन उस युद्ध मे महागाथा, भारतीय रणबाकुरों ने लिखी थी.

इस युद्ध की सबसे अदभुत बात ये थी की जहां हाइफा पर पहले से कब्जा जमाये हुए, ऑटोमन्स सेना के पास मशीनगन- तोपो जैसे हथियार थे और भारत के रणबाकुरों के पास सिर्फ उनके बफादार घोड़े और तलवारे थी.

मतलब तलवारों और घोड़ो का मुकाबला सीधा मशीनगन और तोपों से था, वो भी एक अंजान जगह.

बात प्रथम विश्वयुद्ध की है जब आज के इजरायल के हाइफा शहर पर ऑटोमन्स सेना का कब्जा था, ऑटोमन्स सेना में जर्मनी - हंगरी-ऑस्ट्रिया जैसे देश सम्मलित थे. और इस सेना ने पिछले 400 साल से इजरायल के मुख्य शहर हाइफा जो समुन्द्र के किनारे बसा है उस पर अधिकार किया हुआ था.

इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत की घुड़सवार सेना से मदद ली, उन्होंने जोधपुर महाराज सर प्रताप सिंह से इस युद्ध के लिये देश की सबसे ताक़तभर घुड़सवार सेना, जोधपुर लांसर को भेजने की बात कही.


ये विश्व की पहली और आखिरी जंग थी, जिसमे तलवार भालो से सज्जित घुड़सवार सेना का मुकाबला, ऑटोमन्स सेना की मशीनगन और तोपो से था.

एक वाक्या का जिक्र आज भी आता है, जब ब्रिटिश अधिकारी ने मेजर दलपतसिंह शेखवात से कहा, की आप तलवारों से आटोमन्स सेना का मुकाबला नही कर सकते है, इसलिए आपको युद्ध नही लड़ना चाहिए, तो दलपत सिंह ने कहा था, हम राजपूताने के रणबाकुरे हैं, एक बार युद्ध के मैदान में आने के बाद बापस नही जा सकते, अब जो होगा वो युद्ध करके ही होगा.

भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत कर रहे थे.

दुनिया के आखिरी सफल और बहादुर कैवेलरी चार्ज मारवाड़ के सबसे एलीट जोधपुर लांसर्स के नाम है। मैसूर लांसर सहयोगात्मक रोल में थी।

सिर्फ 1 घण्टे में मारवाड़ी राजपूत शेरो ने 400 साल से गुलाम हाइफा शहर को दुश्मनों से आजाद करा लिया था.

इस युद्ध मे 900 भारतीय सैनिक व 60 घोड़े वीरगती को प्राप्त हुए थे.

इन्ही की याद में दिल्ली में हाइफा चौक का निर्माण किया गया है.

भारतीय सेना ने करीब 1350 ऑटोमन्स सैनिक व 36 अधिकारी बंधक बनाए थे.

आज भी इस युद्ध की याद में इजरायल में हाइफा डे मनाया जाता, है जिसमें भारत से भी शहीदों के परिवार जन या जोधपुर राज्य के वर्तमान महाराज गज सिंह जी श्रद्धांजलि देने जाते हैं.

आज हम भी इतिहास के सबसे बड़े सूरमाओं को इस हाइफा दिबस पर नमन करते हैं..

Hindi Motivational by Jay Vora : 111752283

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now