'कुछ यादें,कुछ बातें...'
रौंगटे खड़े कर देने वाले
गानों में से एक......
"तुमसे मिलकर ना जाने क्यों...."
(कविता जी,प्यार झुकता नहीं)
आज काफी समय के बाद ये गाना मैं फोन में डाउनलोड कर पाई हूँ.. इससे मेरे बचपन की यादें जुड़ी हैं.. जब हम बच्चे थे या कम उम्र के थे तो बच्चों वाली फिल्में देखना या जिन फिल्मों में बच्चे होते थे वो फिल्में हमें बहुत पसंद हुआ करती थी।कभी घर के बड़े लोग जब किसी फिल्म के लिए मना करते थे तो हम ढ़ूँढ़कर उन्हें बताते थे कि इसमें बच्चे भी हैं या कि हीरो-हीरोइन के बचपन के सीन्स भी हैं।(आजकल तो हीरो,हीरोइन बिना बच्चे हुए सीधे बड़े ही होते हैं पर पहले की फिल्मों में वो बच्चे भी हुआ करते थे )
मुझे ऐसी फिल्में पहले और आज भी बहुत अच्छी लगती हैं जिनमें बच्चे होते हैं..
इसीलिए जुगल हंसराज की "मासूम" ,श्रीदेवी की "सदमा",नूतन जी की "सीमा" फिल्में मेरी सबसे पसंदीदा फिल्में हैं।
'तुमसे मिलकर..' गाना फिल्म में 3 बार आता है और तीसरी बार बच्चा गाता है (कविता कृष्णामूर्ति जी),और Theatre में इसे देखकर मेरे दिल-दिमाग पर अमिट छाप बन गई... उस बच्चे की,उसके लाल रंग के कपड़ों की,उसके पहाड़ों पर भागने की,गाने में ज़ोर-2 से माँ-माँ पुकारने की...,मुझे फिल्म की पूरी कहानी तो ठीक से समझ नहीं आई थी तब,इस गाने में पद्यमिनी जी को देखकर सोचती थी कि क्या ये पागल है ,ये बच्चा इसे क्यों परेशान कर रहा है,उनका खिलौना लेकर क्यों भाग रहा है, वो पहाड़ से गिर तो नहीं जाएगी.. आदि... आदि...
वो बच्चा मुझे बहुत अच्छा लगा था/लगता है।
काफी अरसे बाद कहानी समझ आई..पर वो बच्चा, वो गाना,उसका एहसास मेरे लिए अमिट है... ख़ासकर उस समय जब बच्चा गाने में 'माँ,ओ माँ..',गाना शुरू करता है...
आज बहुत अरसे के बाद ये गाना सुना और कई बार सुन चुकी हूँ और लगभग हर बार मेरे रौंगटे खड़े हो गए,'माँ...ओ माँ' के बाद ...
क्या तो गाया है कविता जी ने अपना पूरा मन,पूरी भावनाएँ जोड़कर,क्या सुरों, धुन से सजाया है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी.....,
बराबर स्पेस दिया है गाने को बहुत शांति से,वात्सल्य की भावनाओं पर ध्यान देते हुए ,कहीं भी हड़बड़ी नहीं की...बहुत आराम से और ज़रूरतानुसार तीव्र गति दी है...
सभी को सादर नमन इतनी अभिभूत करने वाली कृति की रचना करने के लिए....
बचपन नहीं भूलता....
प्रांंजल,
18/09/21,12.05P