"साहब हमको ठीक से याद नहीं है लेकिन इतना याद है कि किसी ख़ास के लिए बनाए थे। क्योंकि ऐसे दानों वाला थोड़ा महँगा बनता है, अब परधान जी के लिए बनाए थे या किसी और के लिए, ये याद नहीं।" मंगतू ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
"याद करो ठीक से नहीं तो भूल जाओगे कि कोई घर या बीवी भी है।" इंस्पेक्टर ने धमकाते हुए कहा और फिर मंगतू की बीवी से कहा, "समझाओ इसे, नहीं तो दोनों एक दूसरे को याद नहीं कर पाओगे।"
"साहब, आप एक बार गाँव के बड़े लोगन से पूछ के देख लीजिए। किसी-न-किसी के हाथ में ज़रूर दिखेगा। लेकिन हम लोगों को थाने के चक्कर में नहीं डालिए।" उसकी बीवी गिड़गिड़ायी।
"बोलेगी ज़्यादा? मुँह थूर के इसी दाने जैसा बना देंगे। जबान लड़ाती है साली।" अबकी बार जयराम ने सोचा लात से बोलती बंद कर दें लेकिन फिर इंस्पेक्टर ने रोक दिया। अजीब आदमी है ये इंस्पेक्टर भी।
"एक दिन का समय और दे दीजिए, हम पता लगा के बता देंगे। लेकिन आप एक बार गाँव के बड़े लोगन से भी पूछ के देखिए।" मंगतू की गुज़ारिश थी।
इंस्पेक्टर ने हामी भर के मंजूरी दे दी और सभी साथ निकल गए आगे की मुहीम के लिए।
"जयराम, प्रधान के हाथ पैर पर गौर ज़रूर करना, पांडेय इसे एक बार औरतों को भी दिखाकर कुछ जानकारी निकालने की कोशिश करो।" इंस्पेक्टर ने कहा।
"सर वो चप्पल का दूसरा हिस्सा नहीं मिला और कोई मोची उसको पहचान नहीं पा रहा था। हालाँकि उनके हिसाब से उसकी सिलाई जिस किस्म की है वो मशीन से बनी लगती है, महँगी होती है तो हर घर में भी जल्दी मिलेगा नहीं।"
इंस्पेक्टर ने उनकी बातें ध्यान से सुनी और कुछ सोचने के बाद अपनी गाड़ी दौड़ा दी। बाकी सब भी साथ ही थे। सीधे वो पहुँचे सुशांत के पास।
"प्रधान जी, जुर्म कबूल लोगे तो इज्जत बच जाएगी, नहीं तो इतना घसीटेंगे कि सारी इज्जत धूल झाड़ने के बाद भी नज़र नहीं आएगी।" इंस्पेक्टर ने धमकाते हुए कहा।
"इंस्पेक्टर, यहाँ हमको हाथ लगाने से पहले अपने, इनके और थाने के बारे में सोच लेना। एक इशारे पर पूरा गाँव अपना रास्ता बदल लेता है।" प्रधान ने अपने जलवे से अवगत करवाया।
"थाना जलवाओगे? या हमको मरवाओगे?" इंस्पेक्टर ने पूछा।
"पहले भी कहे कि इनकी हत्या से ना हमको मतलब था, ना है, और ना हमारे हाथ से कुछ हुआ है। और हमसे कोई कुछ जबरदस्ती करवा ले, ऐसा यहाँ कोई माई का लाल अभी तक पैदा भी नहीं हो पा रहा।" सुशांत ने भी अपना तेवर दिखाया।
"सबूत तो सारे तुम्हारे खिलाफ हैं, बस तैयार रहो। बहुत जल्दी, तुम्हारी गर्दन नपेगी।" इंस्पेक्टर ने कहा। कहकर इंस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल्स को इशारा किया और वहाँ से निकल गए।
इधर सुशांत अपने घर में कुछ ढूंढ रहा था और पूरी तरह से झुंझलाया हुआ था। महोबा को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन डर की वजह से कुछ पूछ नहीं पा रही थी। सुधांशु उस समय घर पर नहीं था। (क्रमशः)

Hindi Story by Abhilekh Dwivedi : 111750273

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