एक बूंद की हिमाकत तो देखो
मुकाबला करने चली समन्दर से.
मैं छोटी हूं तो क्या हुआ
बहुत मजबूत हूं अपने अंदर से.

मिटने का मुझे डर नहीं बस
औरों के काम आती हूँ.
जीवन देने की करती हूं कोशिश
प्यासे परिंदों की प्यास बुझाती हूं.

कितने लाचार होते हो तुम जब
किनारे से कोई प्यासा लौट जाता है
तब महासागर होने का तुम्हारा
अभिमान चूर चूर हो जाता है.

जीवन में सिर्फ बड़ा नहीं
जरूरी है सार्थक व उपयोगी होना .
समुद्र की तरह खारा नहीं
बल्कि बूंद की तरह मीठा होना.

स्वरचित
ज़मीला खातून.

Hindi Poem by Jamila Khatun : 111748867

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