कल सुनहरा बनाने की कोशिश में
आज ही खो गया देखते देखते.
जिस कल की तमन्ना में खोए थे हम
वो तो आज हो गया देखते देखते.

आज खोते रहे कल मिला ही नहीं
जिंदगी तुझको हँस के जिया ही नहीं.
रेत के जैसी फिसलती गई हाथ से
कैद मुट्ठी में तुझको किया ही नहीं.

कुछ न पूरा हुआ सब अधूरा रहा
आखिरी जिंदगी का मुकाम आ गया.
अपने पैरों पर चल कर खुद जा न सके
चार कन्धों पर किस्सा तमाम आ गया.

स्वरचित
ज़मीला खातून

Hindi Poem by Jamila Khatun : 111742703
Umakant 3 years ago

बाखूब👌

Jamila Khatun 3 years ago

जी बहुत बहुत शुक्रिया

Jamila Khatun 3 years ago

जी बहुत बहुत धन्यवाद

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