कल सुनहरा बनाने की कोशिश में
आज ही खो गया देखते देखते.
जिस कल की तमन्ना में खोए थे हम
वो तो आज हो गया देखते देखते.
आज खोते रहे कल मिला ही नहीं
जिंदगी तुझको हँस के जिया ही नहीं.
रेत के जैसी फिसलती गई हाथ से
कैद मुट्ठी में तुझको किया ही नहीं.
कुछ न पूरा हुआ सब अधूरा रहा
आखिरी जिंदगी का मुकाम आ गया.
अपने पैरों पर चल कर खुद जा न सके
चार कन्धों पर किस्सा तमाम आ गया.
स्वरचित
ज़मीला खातून