#दुर्योधन #अश्वत्थामा #महादेव #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य

इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सोलहवें  भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के बाकी  बचे हुए जीवित योद्धाओं का संहार करने का प्रण लेकर पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस महाकाल सदृश पुरुष की उपस्थिति मात्र हीं कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में भय का संचार उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त थी ।कविता के वर्तमान भाग अर्थात् सत्रहवें भाग में देखिए थोड़ी देर में उन तीनों योद्धाओं  को ये समझ आ गया कि पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा कोई और नहीं , अपितु कालों के काल साक्षात् महाकाल कर रहे थे । यह देखकर कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में दुर्योधन को दिए गए अपने वचन के अपूर्ण रह जाने के भाव मंडराने लगते हैं। परन्तु अश्वत्थामा न केवल स्वयं के डर पर विजय प्राप्त करता है अपितु सेंपतित्व के भार का बखूबी संवाहन करते हुए अपने मित्र कृपाचार्य और कृतवर्मा को प्रोत्साहित भी करता है। प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का सत्रहवाँ भाग।

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111741821

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