ढूंढती हूँ वो ख़ामोशी, जहाँ ख़ुद को सुन सकूं मैं
ढूंढती हूँ वो तन्हाई, जहाँ ख़ुद को पा सकूं मैं
उलझती जा रही हूँ, अंधेरी जिंदगी के ताने बाने में
ढूंढ़ती हूँ वो दायरा, जहाँ सिमट सकूं मैं
इस उलझती जिंदगी में, जहाँ सुलझ सकूं मैं...

Hindi Poem by Kripa Dhaani : 111738989

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now