हर एक रोज़ जिन्दगी तमाशा करती है ,
उम्मीदों की सुबह से बस आशा करती है ,

शाम ए चराग जलाने में निकल जाती है ,
ख्वाबों को आंखों से रात निगल जाती है ,

हासिल कुछ होता नहीं नई ख्वाहिशों से ,
महसूस हो रहा है बंध गया नई बंदिशों से ,

हवा सुकून वाली आज कल चलती नहीं ,
फिजाओं में खुशबू सुकून की मिलती नहीं ,

दरख्तों से यादों का धुआं निकले ही जा रहा ,
नफरत की आग से दिल पिघले ही जा रहा ,

ख्याल शायर का गाल गुलाबों से लगते हैं ,
तुम्हारे सारे सवालात किताबों से लगते हैं ,

Hindi Poem by Poetry Of SJT : 111738255

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