इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् चौदहवें भाग में दिखाया गया कि प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त होकर अर्जुन द्वारा  जयद्रथ का वध इस तरह से किया गया कि उसका सर धड़ से अलग होकर उसके तपस्वी पिता की गोद में गिरा और उसके तपस्या में लीन पिता का सर टुकड़ों में विभक्त हो गया कविता के वर्तमान प्रकरण  अर्थात् पन्द्रहवें भाग में देखिए महाभारत युद्ध नियमानुसार अगर दो योद्धा आपस में लड़ रहे हो तो कोई तीसरा योद्धा हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। जब अर्जुन के शिष्य सात्यकि और भूरिश्रवा के बीच युद्ध चल रहा था और युद्ध में भूरिश्रवा सात्यकि पर भारी पड़ रहा था तब अपने शिष्य सात्यकि की जान बचाने के लिए अर्जुन ने बिना कोई चेतावनी दिए अपने तीक्ष्ण बाण से भूरिश्रवा के हाथ को काट डाला। तत्पश्चात सात्यकि ने भूरिश्रवा का सर धड़ से अलग कर दिया। अगर शिष्य मोह में अर्जुन द्वारा युद्ध के नियमों का उल्लंघन करने को पांडव अनुचित नहीं मानते तो धृतराष्ट्र द्वारा पुत्रमोह में किये गए कुकर्म अनुचित कैसे हो सकते थे ?  प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का पंद्रहवां भाग।

Hindi Poem by Ajay Amitabh Suman : 111737984

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