सावन

बरसे फुहार जब सावन की , मन सुमन सदृश खिल जाता है
नव - गीत जन्म लेते मन में , तन - मन शीतल हो जाता है
मधुर - मुस्कान सजे मुख पर , मन गीत खुशी के गाता है
प्रतिपल ही प्रतीक्षा रत रहता , जैसे अपना कोई आता है
हर जीव प्रफुल्लित सावन में , यह देख हृदय को भाता है
ज्यों बादल देख के हर किसान , मन ही मन में हर्षाता है
जीवन की तपिश मिट जाती है , मन सुकून से भर जाता है
बस प्यार ही प्यार जगे मन में , मन खुद से ही शर्माता है
ऐसे में किसी की आहट से , मन झंकृत हो कुछ गाता है।
मन व्याकुल सा हो जाता है , मिलने की आस जगाता है
जीवन संगीत बजे हरदम , हर सांस से उसका नाता है
सावन तो जीवनदायी है , बिन सावन जग सूना रह जाता है

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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111733642
सुधाकर मिश्र ” सरस ” 3 years ago

धन्यवाद शेखर जी।

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अत्यंत हृदय स्पर्शी सृजन

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