एक जैन गुरु ने देखा कि उसके उनके पांच शिष्य बाजार से अपनी अपनी साइकिल ओ पर लौट रहे हैं .जब वह साइकिल ओं से उतर गए तब गुरु ने उनसे पूछा तुम सब साइकिल है क्यों चलाते हो पहले शिष्य ने उत्तर दिया मेरी साईकिल पर आलू का बुरा बंदा है इससे मुझे उसे अपनी पीठ पर नहीं ढोना पड़ता गुरु ने उससे कहा तुम बहुत होशियार हो जब तुम बूढ़े हो जाओगे तो तुम्हें मेरी तरफ झुक कर नहीं चलना पड़ेगा दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया मुझे साइकिल चलाते समय पेड़ों और खेतों को देखना अच्छा लगता है गुरु ने उससे कहा तुम हमेशा अपनी आंखें खोली रखते हो और दुनिया को देखते हो तीसरे शिष्य ने कहा जब मैं साइकिल चलाता हूं तब मंत्रों का जाप करता रहता हूं गुरु ने उसकी प्रशंसा की तुम्हारा मन किसी नए कैसे हुए पहिए की तरह रमा रहेगा चौथे शिष्य ने उत्तर दिया साइकिल चलाने पर मैं सभी जीवो से एकात्मकता अनुभव करता हूं गुरु ने प्रसन्न होकर कहा तुम अहिंसा के स्वर्ण पथ पर अग्रसर हो पांचवी शिष्य ने उत्तर दिया मैं साइकिल चलाने के लिए साइकिल चलाता हूं गुरु उठकर पांचवे शिष्य के चरणों के पास बैठ गए और बोले मैं आपका शिष्य हूं