खुशनुमा ज़िंदगी
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द्वारा - - - प्रमिला कौशिक
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सचमुच !
अजीब कशमकश है ज़िंदगी,
वक्त है कि रुकता ही नहीं है।
ख्वाब देख, दर्द पाले हैं हमने,
खुशी भी तो इनमें ही कहीं है।
कुछ खोया कुछ पाया हमने,
पर शिकवा किसी से नहीं है।
खुश हो जाती हूँ ये सोचकर,
कि तू मेरे पास यहीं कहीं है।
काफ़ी है यह अहसास ही कि,
जहाँ भी देखूँ तू बस वहीं है।।
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Hindi Poem by Pramila Kaushik : 111729948

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