किश्ती रेत पे चल रही है किनारा नही है ,
जहां में ख़ुद के सिवा कोई सहारा नही है ,
अक्सर मीठे लोग ज़हर का काम करते हैं ,
यूं तो यहां सब हमारा हैं पर हमारा नही है ,

कोई देखे मेरी अमानत को गवारा नही है ,
जिन्दगी में बिन जिन्दगी के गुजारा नही है ,
हैं बहुत अपने इस जहां में सिर्फ कहने को ,
हर किसी को हमने भी यहां पुकारा नही है ,

Hindi Poem by Poetry Of SJT : 111729195

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