एक लम्हे कि जिद ने सदियों को रुलाया था
हम भी जिद्दी थे उसको दिल में बसाया था
एक रहम किया था उस सितामगर ने
पलट कर वो कभी वापस नहीं आया था
उसे अपने हुस्न पे गुरूर था हमें इश्क पे
इश्क रह गया ढल गया जो हुस्ने सरापा था
दिल की दीवारें इतनी भी नाजुक न थी
यक़ीनन अश्को ने बुनियाद को हिलाया था
अश्कों को पी कर दिल को समझाते रहे
हमारी बे कसी का बस यही नजारा था
निगाहों से निगाहें मिला कर तो देख लेते
केशव आज भी उन्हीं गलियों में बैठा था